जीव जगत कितने प्रकार के होते हैं? - jeev jagat kitane prakaar ke hote hain?

(classification of animal kingdom) जीव जगत का वर्गीकरण : सरल आकारकी लक्षणों पर आधारित जन्तुओं व पादपों के वर्गीकरण को सर्वप्रथम अरस्तु ने प्रस्तावित किया।

अरस्तू ने सभी जन्तुओं को इनैइमा तथा एनेइमा में तथा पादपों को शाक , झाड़ी तथा वृक्ष में विभाजित किया।

द्विजगत पद्धति : यह वर्गीकरण की एक पद्धति है जिसमे संसार के सभी जीवों को ऐनिमिलिया तथा प्लान्टी दो जगतो में विभाजित किया।  यह प्रणाली अरस्तु ने प्रचलित की।  परन्तु अभिलेख के रूप में केरोलस लिनियस ने अपनी पुस्तक systema naturae में उल्लेखित किया।

तीन जगत पद्धति : यह पद्धति अर्नेस्ट हिकल ने 1866 में प्रस्तुत की थी।  इस पद्धति के अनुसार सभी सजीवों को जन्तु जगत पादप जगत तथा प्रोटिस्य तीन जगतो में बांटा गया।

द्विजगत व तीन जगत पद्धति दोषयुक्त है , इसलिए इन दोषों को दूर करने के लिए पाँच जगत पद्धति प्रस्तावित की गई।

पाँच जगत प्रणाली : सन 1969 में आर.एच. व्हिटकर ने वर्गीकरण की पाँच जगत प्रणाली प्रस्तुत की। पाँच जगत प्रणाली में जीवों को वर्गीकृत करने का आधार कोशिका संरचना की जटिलता शारीरिक संगठन पोषण विधि व जीवन चक्र को रखा गया।  व्हिटकर द्वारा प्रस्तावित पांच जगत निम्न है –

1. मोनेरा (Monera) : इस जगत में जीवाणु , नीलरहित शैवाल , माइक्रोप्लाज्मा आदि (प्रोकेरियोटिक) जीवों को रखा गया है।

2. प्रॉटिस्टा (protesta) : इस जगत में एक कोशिकीय युकेरियोटिक जीवों को सम्मिलित किया गया है।

जैसे : प्रोटोजोआ , युग्लिना

3. कवक (fungi) : इस जगत में काइटिन युक्त कोशिका भित्ति वाले जीवों को रखा गया है , ये ऐसे जीव होते है जो अवशोषण द्वारा पोषण प्राप्त करते है।

जीवों का पाँच जगत वर्गीकरण Five kingdom classification of organisms




अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है | जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत(Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग(Order), वंश(Genus) और जाति(Species) के पदानुक्रम में  किया जाता है | इसमें सबसे उच्च वर्ग ‘जगत’ और सबसे निम्न वर्ग ‘जाति’ होती है| अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है|

वर्गीकरण विज्ञान का विकास

सर्वप्रथम अरस्तू ने जीव जगत को दो समूहों अर्थात् वनस्पति व जंतु जगत में बाँटा था |उसके बाद लीनियस ने अपनी पुस्तक ‘Systema Naturae’ में सभी जीवधारियों को पादप व जंतु जगत में वर्गीकृत किया |लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी है|




1969 ई. में परंपरागत द्विजगत वर्गीकरण प्रणाली का स्थान व्हिटकर (Whittaker) द्वारा प्रस्तुत पाँच जगत प्रणाली ने ले लिया | व्हिटकर ने सभी जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdoms) में वर्गीकृत किया:

1. मोनेरा जगत (Kingdom Monera): इस जगत में प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात् जीवाणु (Bacteria), सायनोबैक्टीरिया और आर्कीबैक्टीरिया शामिल हैं|

2. प्रोटिस्टा जगत (Kingdom Protista): इस जगत में एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव शामिल हैं | पादप व जंतु के बीच स्थित युग्लीना इसी जगत में शामिल है |

3. कवक जगत (Kingdom Fungi) : इसमें परजीवी तथा मृत पदार्थों पर भोजन के लिए निर्भर जीव शामिल है | इनकी कोशिका भित्ति काईटिन की बनी होती है |

4. पादप जगत (Kingdom Plantae): इस जगत में शैवाल व बहुकोशिकीय हरे पौधे शामिल हैं |

5. जंतु जगत (Kingdom Animal): इसमें सभी बहुकोशिकीय जंतु शामिल होते हैं | इसे ‘मेटाजोआ’ भी कहा जाता है |

जीव जगत कितने प्रकार के होते हैं? - jeev jagat kitane prakaar ke hote hain?

1982 ई. में मार्ग्युलियस व स्वार्त्ज़ (Margulius and Schwartz) ने पाँच जगत वर्गीकरण का पुनरीक्षण (Revision) किया | इसमें एक प्रोकैरियोटिक और चार यूकैरियोटिक जगत अर्थात् प्रोटोसिस्टा (Protocista), कवक, पादप व जंतु को शामिल किया गया | वर्तमान में इस वर्गीकरण प्रणाली को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है |  

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1. मोनेरा जगत (प्रोकैरियोटिक):

इसे पुनः आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria) और यूबैक्टीरिया(Eubacteria ) में बाँटा जाता है, जिनमें से आर्कीबैक्टीरिया अधिक प्राचीन है |

a. आर्कीबैक्टीरिया: इनमें से अधिकांश स्वपोषी (Autotrophs) होते हैं और वे अपनी ऊर्जा चयापचय क्रिया (Metabolic Activities), रासायनिक ऊर्जा के स्रोतों (जैसे-अमोनिया,मीथेन,और हाइड्रोजन सल्फाइड  गैस) के आक्सीकरण से प्राप्त करते हैं | इन गैसों की उपस्थिति में ये अपना स्वयं का अमीनो अम्ल बना सकते हैं | इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जाता है- मेथोनोजेंस (मीथेन का निर्माण करते है), थर्मोएसिडोफिल्स (अत्यधिक उष्ण और अम्लीय पर्यावरण के प्रति अनुकूलित) तथा हैलोफिल्स (अत्यधिक लवणीय पर्यावरण में बढ़ने वाले)|

b. यूबैक्टीरिया:  इनमें प्रायः झिल्ली से घिरे हुए केन्द्रक आदि कोशिकांग(Organelles) नहीं पाए जाते हैं | न्युक्लियोएड (Nucleoid) एकमात्र गुणसूत्र की तरह कार्य करता है | प्रकाश संश्लेषण व इलेक्ट्रानों का हस्तांतरण (Transfer) प्लाज्मा झिल्ली पर होता है |





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यूबैक्टीरिया

2. प्रोटिस्टा जगत (प्रोटोसिस्टा)

a. इसमें विभिन्न प्रकार के एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव, जैसे एककोशिकीय शैवाल, प्रोटोज़ाआ और एककोशिकीय कवक शामिल हैं|

b. ये स्वपोषी (जैसे- एककोशिकीय कवक,डायटम) या परपोषी (जैसे- प्रोटोज़ाआ) होते हैं|

c. एककोशिकीय कवक, क्लोरेला, युग्लीना, ट्रिपैनोसोमा (नींद की बीमारी का कारण ), प्लाज्मोडियम, अमीबा, पैरामीशियम (Paramecium), क्लामिडोमोनास (Chlamydomonas) आदि इसके उदाहरण हैं|

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पैरामीशियम



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3. कवक जगत

a. इसमें वे पौधे शामिल हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthetic) क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर पाते हैं |

b. ये परपोषी (Heterotrophic) और यूकैरियोटिक होते हैं |

c. कुछ कवक परजीवी(Parasites) होते हैं और जिस पौधे पर रहते हैं उसी   से अपने लिए पोषक पदार्थ प्राप्त करते हैं |

d. कुछ कवक, जैसे पेंसीलियम, अपघटक (Decomposer) होते हैं और मृत पदार्थों से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं |

पांच जगत कौन कौन से हैं?

जीवविज्ञान में वर्गीकरण (Classification) की बात करते हैं तो व्यापक स्तर पर पांच जगत वाली प्रकृति हमारे सामने उभरती है। मोनेरा, प्रोटिस्टा, फफूंद, वनस्पति और जंतु जगत

जीव जगत को कितने भागों में बांटा गया है?

संसार के समस्त जीव-जंतुओं को 10 वर्गों में विभाजित किया गया है। सभी एक कोशिकीय जीवों को एक ही संघ कार्डेटा में रखा गया है। जबकि बहुकोशिकीय जीवों को 9 संघों में विभाजित किया गया है।

जगत कितने प्रकार के होते है?

मोनेरा जगत (प्रोकैरियोटिक): इसे पुनः आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria) और यूबैक्टीरिया(Eubacteria ) में बाँटा जाता है, जिनमें से आर्कीबैक्टीरिया अधिक प्राचीन है | a. ... .
प्रोटिस्टा जगत (प्रोटोसिस्टा) a. ... .
कवक जगत a. ... .
पादप जगत a. ... .
जंतु जगत.

जगत का पिता कौन है?

शिव जगत पिता और पार्वती जगत माता हैं। महाराज ने बताया कि पति और प|ी ग्रहस्त जीवन में जितना एक दूसरे का सहयोग करते हैं उतना ही सुख उनको मिलता है।