चौरी चौरा (Chauri Chaura) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के गोरखपुर ज़िले में स्थित एक क़स्बा है। यह वास्तव में दो अलग-अलग गांवों - चौरी (Chauri) और चौरा (Chaura) का सम्म्लित क्षेत्र है। ब्रिटिश भारतीय रेलवे के एक ट्रैफिक मैनेजर ने इन गांवों का नाम एक साथ किया था और जनवरी 1885 में यहाँ एक रेलवे स्टेशन की स्थापना की थी। शुरु में सिर्फ़ रेलवे प्लेटफॉर्म और मालगोदाम का नाम ही चौरी-चौरा था। Show बाद में चौरा गांव में बाज़ार लगने शुरू हुए। जिस थाने को 4 फरवरी 1922 को जलाया गया था, वो चौरा गांव में ही था। यह पुलिस थाना एक तीसरे दर्जे का थाना था। इस थाने की स्थापना 1857 की क्रांति के बाद हुई थी।
2. चौरी चौरा कांड/ चौरी-चौरा की घटना, 1922गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था। असहयोग आंदोलन के अंतर्गत गांधीजी ने ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला लिया था। चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में तत्कालीन संयुक्त प्रांत (वर्त्तमान में उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक समूह पुलिस के साथ भिड़ गया था। चौरी चौरा कस्बे में 4 फरवरी 1922 दिन शनिवार को स्वयंसेवकों ने बैठक की और जुलूस निकालने के लिये पास के मुंडेरा बाज़ार को चुना गया। जब सत्याग्रही थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे तब तत्कालीन थानेदार (गुप्तेश्वर सिंह) ने जुलूस को अवैध घोषित कर दिया और पुलिसकर्मियों ने जुलूस को रोकने के लिए बल का प्रयोग किया। स्वयंसेवकों ने इसका विरोध किया तो पुलिस और स्वयंसेवकों के बीच झड़प हो गई। पुलिस ने भीड़ पर गोली चला दी, जिसमें 11 सत्याग्रही मौके पर ही शहीद हो गए और कई घायल हो गए। इससे सत्याग्रही आक्रोशित हो गए। गोली खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने की तरफ भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन्हें दौड़ा लिया। पुलिसवालों ने थाने के दरवाजे बंद कर लिए और थाने के अंदर छिप गए। प्रदर्शनकारियों ने सुखी लकड़ियां, कैरोसिन तेल की मदद से थाना भवन को आग लगाई। ये घटना दोपहर में करीब 1.30 बजे शुरू हुई और शाम 4 बजे तक चलती रही, जिसमे 22 पुलिसकर्मियों की जिन्दा जल के मृत्यु हुई थी। चौरी चौरा कांड में एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी भाग निकला और गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को उसने इस घटना की सूचना दी थी।
3. चौरी चौरा कांड में मरने वाले पुलिसकर्मियों के नाम
उस दिन वेतन लेने थाने पर आए चौकीदार
4. चौरी चौरा कांड और महात्मा गांधीमहात्मा गांधी ने चौरी चौरा कांड के कारण 12 फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस की बैठक में राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग आंदोलन को वापिस ले लिया था। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने की घोषणा का निर्णय से सुभाष चंद्र बोस, चितरंजन दास “देशबंधु”(सी.आर. दास) और मोतीलाल नेहरू जैसे कई शीर्ष कांग्रेस नेता उनसे नाराज हुए। मोतीलाल नेहरू और सी.आर. दास (चितरंजन दास “देशबंधु”) ने गांधीजी के फैसले पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और स्वराज पार्टी की स्थापना का फैसला किया। गांधीजी द्वारा आंदोलन को वापस लेना उनके “संघर्ष विराम संघर्ष”रणनीति का हिस्सा था। 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएँ होतीं। गांधीजी ने इस घटना के लिए एक तरफ जहाँ पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया (क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था) तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने की अपील की। गांधीजी को मार्च 1922 में गिरफ़्तार कर लिया गया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा भी चला। 5. चौरी चौरा कांड का मुकदमाचौरीचौरा काण्ड के लिए पुलिस ने कई लोगों को अभियुक्त बनाया। गोरखपुर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश मिस्टर एचई होल्मस ने 9 जनवरी 1923 को 172 अभियुक्तों को मौत की सजा का फैसला सुनाया। 2 को दो साल की कारावास और 47 को संदेह के लाभ में दोषमुक्त कर दिया। गोरखपुर सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ जिला कांग्रेस कमेटी, गोरखपुर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अभियुक्तों की तरफ से अपील दाखिल की। इसकी पैरवी पंडित मदन मोहन मालवीय ने की और 151 लोगो को फांसी की सजा से बचाने में सफल रहे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर ग्रिमउड पीयर्स तथा न्यायमूर्ति पीगट ने 30 अप्रैल 1923 को फैसला सुनाया, जिसके तहत 19 अभियुक्तों को मृत्यु दण्ड, 16 को काला पानी, इसके अलावा बचे लोगों को आठ, पांच व दो साल की सजा दी गई। 3 को दंगा भड़काने के लिए दो साल की सजा तथा 38 को छोड़ दिया गया। 19 लोगों को जुलाई, 1923 के दौरान फांसी दे दी गई। इन्हें दी गई थी फांसी
6. चौरी चौरा स्मारकब्रिटिश सरकार ने चौरी चौरा में मारे गए पुलिसवालों की स्मृति में एक स्मारक का निर्माण किया था। 1971 में गोरखपुर ज़िले के लोगों ने उन 19 लोगों को जिन्हें चौरी चौरा कांड मुकदमे के बाद फाँसी दे दी गयी थी, की स्मृति में 'शहीद स्मारक समिति' का निर्माण किया। इस समिति ने 1973 में चौरी-चौरा में 12.2 मीटर ऊंचा एक मीनार बनाई। इसके दोनों तरफ एक शहीद को फांसी से लटकते हुए दिखाया गया था। इसे चंदे के पैसे से बनाया गया। इसकी लागत 13,500 रुपये आई थी। बाद में भारत सरकार ने उन शहीदों की स्मृति में एक स्मारक बनवाया। इसे ही आज मुख्य शहीद स्मारक के तौर पर जानते हैं।इस स्मारक पर उन लोगों के नाम खुदे हुए हैं जिन्हें फाँसी दी गयी थी। इस स्मारक के पास ही स्वतंत्रता संग्राम से सम्बन्धित एक पुस्तकालय और संग्रहालय भी बनाया गया है। भारतीय रेलवे ने दो ट्रेन भी चौरी-चौरा के शहीदों के नाम से चलवाई है। इन ट्रेनों के नाम शहीद एक्सप्रेस और चौरी-चौरा एक्सप्रेस है।
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