MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी (कहानी, मुंशी प्रेमचन्द)दो बैलों की कथा-कहानी पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तरदो बैलों की कथा-कहानी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर Show
प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. उत्तर: दो बैलों की कथा-कहानी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6.
प्रश्न 7. प्रश्न 8.
1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक) : 2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक) : 3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक) : 4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक) : प्रगतिवादी कथाकारों में यशपाल, राहुल सांकृत्यायन; रांगेय राघव, अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव आदि उल्लेखनीय हैं। विचार प्रधान कथाकारों में धर्मवीर भारती, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महिला कथाकारों में सुभद्राकुमारी चौहान, शिवरानी देवी, मन्नू भण्डारी, शिवानी आदि अधिक प्रसिद्ध हैं। 5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक) : 6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अव तक) : आज की कहानी शहरी-सभ्यता, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की नई अवधारणा, आपसी . सम्बन्धों के बिखराव, भय और असुरक्षा की भावना, चारित्रिक ह्रास, यौन कुण्ठा, घिनौनी मानसिकता, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष, औद्योगिकीकरण के दुष्प्रभाव से दम तोड़ती मानवता आदि को चित्रित करने में सक्रिय दिखाई दे रही हैं। इसकी भाषा-शैली दोनों ही तराशती हुई और नए-नए तेवरों को प्रस्तुत करने की क्षमता प्रशंसनीय है। दो बैलों की कथा-कहानी की परिभाषा कहानी की परिभाषा पश्चिमी और भारतीय समीक्षकों ने अलग-अलग रूप में दी है
II. भारतीय समीक्षक
दी गई उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है- दो बैलों की कथा-कहानी भाव-विस्तार/पल्लवन प्रश्न 1. प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
(ख) “दोनों दिन भर जोते जाते……..विद्रोह भरा हुआ।” व्याख्या : विशेष :
(ग) “हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था।” व्याख्या : विशेष :
(घ) “दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।” व्याख्या : विशेष :
(ङ) “बैल का जन्म लिया है, तो मार से कहाँ तक बचेंगे।” व्याख्या : विशेष :
दो बैलों की कथा-कहानी भाषा-अध्ययन प्रश्न 1. प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग छाँटिए- विश्वास, अभिनन्दन, निर्दयी, अनुमान, दुर्बल, अनाथ। उत्तर: प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5.
उत्तर:
दो बैलों की कथा-कहानी योग्यता विस्तार प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. दो बैलों की कथा-कहानी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरदो बैलों की कथा-कहानी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. दो बैलों की कथा-कहानी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. जब वे दोनों हल या गाड़ी में जोते जाते और गर्दन हिला-हिलाकर चलते तो उस समय दोनों की यही कोशिश होती थी कि अधिक-से-अधिक भार मेरी ही गर्दन पर रहे। दिन-भर के वाद दोपहर या शाम को खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान दूर किया करते थे। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने पर दोनों एक ही साथ उठते। एक ही साथ नाँद में मुँह डालते। अगर एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था। प्रश्न 2.
प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. दो बैलों की कथा-कहानी लेखक-परिचय प्रश्न. जन्म एवं शिक्षा : रचनाएँ : उपन्यास : कहानी : भाषा-शैली : महत्त्व : दो बैलों की कथा-कहानी पाठ का सारांश प्रश्न. इसलिए उन्होंने उन्हें ले जाने वाले झूरी के साले गया का विरोध किया। उन्हें घर तक ले जाने में उसे दाँतों पसीना आ गया। दिन-भर के भूखे रहने पर भी उन्होंने वहाँ कुछ भी खाया-पीया नहीं। रात को सबके सो जाने पर वे पगहे तुड़ाकर भागते हुए झूरी के घर वापस आ गए। झूरी ने दौड़कर उन्हें गले लगाया। गाँव के लोगों ने तालियाँ बजा बजाकर उनका स्वागत किया। लेकिन झूरी की पत्नी से. यह नहीं देखा गया। उसने क्रोध में आकर कहा कि वे दोनों बैल नमकहराम हैं कि बिना काम किए ही भाग आए हैं। इन्हें अब सूखे भूसे ही खाने को दिया जाएगा। झूरी ने इसका विरोध तो किया, लेकिन उसकी एक न चली। दूसरे दिन आकर झूरी का साला बैलों को ले गया। उन्हें गाड़ी में जोता। मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा तो हीरा ने उसे सँभाल लिया। शाम को झूरी ने बदले की भावना से उन्हें मोटी रस्सियों से बाँधकर उनके सामने सूखा भूसा डाल दिया। उन दोनों ने उसे सूंघा तक नहीं। उसने अपने बैलों को खली-चूनी सब कुछ दी। दूसरे दिन उसने उन्हें हल में जोता तो उन्होंने अपने पाँव नहीं बढ़ाए। उसे देखकर गया क्रोध से पागल हो उठा। उसने उन दोनों पर जमकर डण्डे बरसाए। दोनों हल सहित सब कुछ तोड़कर भाग उठे। गया को दो आदमियों के साथ दौड़कर आते हुए देखकर हीरा ने मोती को समझाया कि अब भागना व्यर्थ है। हीरा मोती की बात मानकर चुपचाप खड़ा हो गया। गया उन दोनों को पकड़कर घर ले गया। उसने फिर वही सूखा भूसा उन दोनों के सामने रख दिया। दोनों ने उसे देखा तक नहीं। रात को एक छोटी-सी लड़की उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती थी। वे प्रसाद की तरह उन्हें खाकर चुपचाप पड़े रहते थे। एक दिन उस लड़की ने उन दोनों की मोटी-मोटी रस्सियों को खोलकर उन्हें भाग जाने का मौका दिया। फिर उसने जोर से चिल्लाते हए कहा-“ओ दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो” इसे सुनकर गया उनको पकड़ने चला। वे दोनों और भागने लगे तो गया भी उनके पीछे तेजी से दौड़ने लगा। यह देख वह गाँव के कुछ लोगों को साथ लेने के लिए लौटा तो वे दोनों और सरपट भागने लगे। इससे उन्हें अपने परिचित रास्ते का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा। वे रास्ता भूल भटककर किसी के मटर के खेत में चरने लगे। भरपेट मटर चर लेने के बाद वे इठलाने लगे। उन्हें वहाँ देखकर काजी हाउस में बन्द कर दिया गया। एक सप्ताह तक वे वहाँ विना चारे के बन्द रहे। उन्हें दिन भर में एक बार पानी पिलाया जाता था। इससे वे जिन्दा तो रहे, लेकिन उनसे उठा तक न जाता था। एक सप्ताह के बाद उनको नीलाम कर दिया गया। एक दढ़ियल आदमी ने उन्हें खरीद लिया। वह बहुत कठोर था। नीलाम होने के बाद दोनों (हीरा और मोती) को वह दढ़ियल लेकर चला। उस समय दोनों भय से थर-थर काँप रहे थे, लेकिन वे मजबूर थे। अचानक उन्हें लगा कि वे परिचित रास्ते पर ही चल रहे हैं। गया उन्हें इसी रास्ते से ले गया था। इसी कुएँ पर वे पुर चलाने आया करते थे। अब हमारा घर पास ही आ गया है। इससे दोनों छलाँग लगाते हुए झूरी के घर की ओर दौड़ने लगे। वहाँ पहुँचकर वे अपने-अपने थान पर खड़े हो गए। उनके पीछे-पीछे दौड़ते हुए वह दढ़ियल भी वहाँ पहुँच गया। झूरी उन दोनों को देखकर प्रसन्नता से झूम उठा। उसने उन्हें गले लगाया। उस दढ़ियल ने कहा-‘मैंने इन्हें मवेशीखाने से नीलाम लिया है। इसलिए ये मेरे बैल हैं। झूरी ने कहा -‘ये मेरे बैल हैं, क्योंकि ये मेरे द्वार पर खड़े हैं। किसी को मेरे बैलों को नीलाम करने का कोई भी हक नहीं है। लेकिन उस दढ़ियल ने झूरी की एक न सुनी। उसने उन्हें बलपूर्वक पकड़ना चाहा तो मोती ने उसे सींग चलाकर गाँव से बाहर कर दिया। इससे वह हारकर चला गया। मोती अकड़ता हुआ लौट आया। गाँव के लोग यह देखकर बाग-बाग हो गए। झूरी ने उन दोनों के नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया। उन्हें दोनों प्रसन्नतापूर्वक खाने लगे। झूरी उन्हें सहला रहा था। दो बैलों की कथा-कहानी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या 1. झरी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाई जाति के थे। देखने में सुन्दर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक-दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते में नहीं। केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्टता होते ही धोल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। शब्दार्थ : प्रसंग : व्याख्या : कहानीकार का पुनः कहना है हीरा और मोती का परस्पर प्रेम-व्यवहार खुला हुआ था। वे एक-दूसरे के पास बैठते-रहते। एक-दूसरे को चाटते-सूंघते थे। एक-दूसरे को सींग मिलाते थे। उनका यह परस्पर व्यवहार किसी भी दशा में परस्पर लड़ने-झगड़ने की मंशा से नहीं होता था। यह तो उनके परस्पर लगाव को मनोरंजन के रूप में बढ़ाने के लिए ही होता था। इस प्रकार उनकी दोस्ती बहुत घनी हो गई थी। उसमें खुलापन आ गया। उससे वह और टिकाऊ होने लगी थी। सच-मुच में इसके बिना दोस्ती ऐसी हल्की-हल्की-सी बनी रहती है, जिसके समाप्त होने की शंका बनी रहती है। विशेष :
गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर- गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर- 2. संयोग की बात, झूरी ने एक बार मोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों – बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे को जाने लगते। मारता तो दोनों नीचे करके हँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं . उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें . तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथों क्यों बेच दिया। शब्दार्थ : प्रसंग : व्याख्या : कहानीकार का पुनः कहना है कि झूरी के वे दोनों बैल हीरा और मोती अपने मालिक की इस अचानक बेरहमी को बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहे थे कि वह अब उन्हें बेसहारा क्यों बना रहा है? अगर वे कुछ बोल पाते, तो वे उससे यह अवश्य पूछते कि क्या उन्होंने उसके काम सच्चाई से नहीं किए। अगर नहीं तो वह उनसे फिर से और सारे काम लेता। वे तो उसका ही काम सच्चाई से करते हुए अपनी पूरी-की-पूरी जिन्दगी बिता देना चाहते थे। उन्होंने तो उससे कभी भी खाने-पीने की कुछ भी शिकायत नहीं की। उन्हें जो कुछ मिला, चुपचाप स्वीकार कर लिया। फिर उनसे ऐसी कौन-सी गलती हुई कि उसने इस बेरहम के गले लगा दिया। विशेष :
गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर- गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर- 3. दोनों दिन-भर जोते जाते, डण्डे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए। जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती। प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल भूसा खाकर भी दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था। शब्दार्थ : प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर- गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर- 4. गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहाँ पता न था। नए-नए गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए। शब्दार्थ : प्रसंग : व्याख्या : अपनी पकड़ से उन दोनों को बाहर होते हुए देखकर उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया। उसकी आवाज सुनकर लोग दौड़े-दौड़े उसके पास आ गए। उसने कुछ आदमियों को अपने साथ लेकर उन दोनों बैलों का पीछा किया। इतने समय में वे दोनों काफी दूर निकल गए। वे इतनी तेजी से भाग रहे थे कि वह सही-गलत रास्ते का चुनाव नहीं कर पाए। यहाँ तक कि वे झूरी के घर से जिस रास्ते से होकर आए थे, उससे भी भटक गए। अब उनके सामने सब कुछ नया-नया और अनजान था। इससे वे घबड़ा गए। आगे अब क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, इस सोच-विचार में वे एक खेत के किनारे खड़े हो गए। विशेष :
गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर- गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर 5. सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अन्तर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई सन्देह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया। हीरा और मोती ने जया को पूरे रास्ते परेशान क्यों किया?हीरा और मोती को रास्ता मालूम नहीं था। उत्तर– उन्हें लगा उनके मालिक ( झुरी) ने उन्हें गया को बेच दिया है।
हीरा मोती गया के घर से पहली बार क्यों भागे?उत्तर. हीरा और मोती गया के घर से इसलिए भागे क्योंकि वह दिन भर कड़ी मेहनत लेता और खाने को सूखा भूसा देता व रोज मारता। भागने में उनकी मदद भैरों की लड़की ने की। प्रश्न.
हीरा और मोती ने गया के घर पहुंच कर नांद में मुंह क्यों नहीं डाला?क्योंकि झूरी का साला गया दोनों बैलों हीरा-मोती को झूरी के घर से अपने घर ले गया था। बैलों के लिये वो घर नया था। उन्होंने में नांद में मुँह इसलिये नही डाला क्योंकि उनका अपना घर छूट गया था।
हीरा और मोती दोनों कहाँ आ गए थे और क्यों?साँड़ द्वारा एक पर आक्रमण करते ही दूसरा साँड़ के पेट में सींग घुसेड़ देता था, इस प्रकार दोनों की जान बची तथा साँड़ को भी भागना पड़ा। मटर खाते समय मोती के पकड़े जाने पर हीरा भी वापस आ गया और दोनों ही कांजीहौस में बंदी बनाए गए।
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