प्रेम विवाह का योग कैसे बनता है? - prem vivaah ka yog kaise banata hai?

मैंने निजी जीवन मे अनेकों  जन्मपत्रिका  में प्रेम विवाह के योग  देखें  हैं  जिनका  प्रेम  विवाह हुआ  है । उनकी जन्मपत्रिका में  ये स्पष्ट परिलक्षित होता भी है। लेकिन मैंने यहाँ उनके उदाहरण इसलिए नही दिए क्योंकि एक तो उनके निजत्व  का हनन नही  किया जा सकता और  उनका   जीवन  कोई खुली  किताब  नही है।  इसिलए  प्रसिद्ध हस्तीयों के उदाहरण दिए क्योंकि उनके बारे में हर किसी को सब कुछ पता है।

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इस प्रकार के योग यदि जन्म कुंडली में होते हैं, तब प्रेम विवाह के योग बनते हैं। यह जरूरी नहीं है कि प्रेम विवाह मतलब जाति से बाहर विवाह होना। लव मैरिज यानी जहां आपका दिल कहे वहां शादी। तो लव और मैरिज दोनों से पहले अपना होरोस्कोप जरा चैक कीजिए।

अनेक जातक-जातिका जानना चाहते हैं कि प्रेम विवाह होगा या नहीं, कहीं हमारा विवाह असफल तो नहीं होगा या तीसरे व्यक्ति के कारण जीवन में संघर्ष तो शुरू नहीं हो जाएगा।



 


जब तक 2 लोगों के मंगल व शुक्र में आकर्षण नहीं होगा, तब तक उनमें प्रेम नहीं होगा। अगर किसी एक का ग्रह दूसरे के ग्रह को देखता है लेकिन दूसरे का ग्रह पहले को नहीं देखता है तो प्रेम एकतरफा ही होगा। 

 

जन्म कुंडली में विवाह कारक ग्रह पंचम के साथ संबंध बनाता हो अथवा 5 का 2, 7, 11 से संबंध हो तो विवाह होता है। प्रेम विवाह कारक ग्रह 1, 4, 6, 8, 10, 12 से जुड़ा हो तो प्रेम विवाह नहीं होता है अथवा विवाह कारक एवं अकारक दोनों से संबंध हो तो विवाह के बाद दूसरा विवाह होता है। ऐसा प्रेम विवाह नहीं चलता है।

 

सप्तम का सब लॉर्ड पंचम का प्रबल कार्येश हो तो प्रेम विवाह अवश्य होता है। प्रेम विवाह कारक का संबंध यदि 6, 8, 12 से बनता है तो ऐसे विवाह से परिजन की हानि के योग बनते हैं।

 

 


1. जिस जातक की प्रभावित रेखा चन्द्र क्षेत्र पर होकर भाग्य रेखा से मिले एवं शुक्र क्षेत्र पर आड़ी रेखाएं होकर भी वे जीवनरेखा से न मिले, ऐसे जातक का विवाह न होकर पर-स्त्री से प्रेम होता है एवं स्त्री के कारण ही यह जातक संकट में पड़ता है। कभी-कभी ऐसे जातकों को स्त्री के कारण जेल यात्रा भी करना पड़ती है।



प्रेम विवाह का योग कैसे बनता है? - prem vivaah ka yog kaise banata hai?


 

2. जिस जातक के दोनों हाथों पर हृदय रेखा में द्वीप चिन्ह हो और शुक्र रेखा स्वास्थ्य रेखा को काटकर ऊपर जाए, निश्चय ही ऐसे व्यक्ति का अवैध प्रेम संबंध होता है।


3. जिस जातक के हाथ की हृदय रेखा या बुध क्षेत्र पर जाए, उसका किसी निकट संबंधी या रिश्तेदार स्त्री से प्रेम संबंध होता है।


4. यदि अंगुलियों के तीसरे पर्व पर यव चिन्ह हो व द्वितीय पर्व पर भी यव चिन्ह हो, वह विद्याविहीन, विषयासक्त, भोगी, दुराचारी होकर जल में डूब मरता है।

प्रेम हृदय की एक ऐसी अनुभूति है जो हमें जन्म से ही ईश्वर की ओर से उपहार स्वरूप प्राप्त होती है। आगे चलकर यही प्रेम अपने वृहद स्वरूप में प्रकट होता है। प्रेम किसी के लिए भी प्रकट हो सकता है। वह ईश्वर, माता-पिता, गुरु, मित्र, किसी के लिए भी उत्पन्न हो सकता है।

लेकिन आज के समाज में सिर्फ विपरीत लिंगी के लिए प्रकट अनुभूतियों को ही प्रेम समझा जाता है। सारा संसार जानता है कि मीरा का प्रेम कृष्ण के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रेम था। यूं तो ढेरों भक्त कवियों ने भी कृष्ण से अपने प्रेम का वर्णन किया है। जैसे- सुरदास इत्यादि।

ज्योतिष में प्रेम- संबंधों और प्रेम-विवाह को लेकर हमेश से ही दिलचस्पी रही है। ज्योतिषी शास्त्र में कई ऐसी ग्रह दशाओं और योगों का वर्णन है, जिनकी वजह से व्यक्ति प्रेम करता है और स्थिति प्रेम-विवाह तक पहुंच जाती है।

– प्रेम विवाह में कारक ग्रहों के साथ यदि अशुभ व क्रूर ग्रह बैठ जाते हैं तो प्रेम-विवाह में बाधा आ जाती है। यदि प्रेम-विवाह का कुण्डली में योग न हो तो प्रेम-विवाह नहीं होता। आइए, जानें ऐसे कुछ ज्योतिषीय योगों के बारे में-

प्रेम-विवाह के ज्योतिषीय योग-
1. जन्म पत्रिका में मंगल यदि राहू या शनि से युति बना रहा हो तो प्रेम-विवाह की संभावना होती है।

2. जब राहू प्रथम भाव यानी लग्न में हो परंतु सातवें भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो व्यक्ति परिवार के विरुद्ध जाकर प्रेम-विवाह की तरफ आकर्षित होता है।

3. जब पंचम भाव में राहू या केतु विराजमान हो तो व्यक्ति प्रेम-प्रसंग को विवाह के स्तर पर ले जाता है।

4. जब राहू या केतु की दृष्टि शुक्र या सप्तमेश पर पड़ रही हो तो प्रेम-विवाह की संभावना प्रबल होती है।

5. पंचम भाव के मालिक के साथ उसी भाव में चंद्रमा या मंगल बैठे हों तो प्रेम-विवाह हो सकता है।

6. सप्तम भाव के स्वामी के साथ मंगल या चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तो भी प्रेम-विवाह का योग बनता है।
7. पंचम व सप्तम भाव के मालिक या सप्तम या नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ विराजमान हों तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।

8. जब सातवें भाव का स्वामी सातवें में हो तब भी प्रेम-विवाह हो सकता है।

9. शुक्र या चन्द्रमा लग्न से पंचम या नवम हों तो प्रेम विवाह कराते हैं।

10. लग्न व पंचम के स्वामी या लग्न व नवम के स्वामी या तो एकसाथ बैठे हों या एक-दूसरे को देख रहे हों तो प्रेम-विवाह का योग बनाते हैं यह।

11. सप्तम भाव में यदि शनि या केतु विराजमान हों तो प्रेम-विवाह की संभावना बढ़ती है।

12. जब सातवें भाव के स्वामी यानी सप्तमेश की दृष्टि द्वादश पर हो या सप्तमेश की युति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम-विवाह की उम्मीद बढ़ती है।

कुंडली में प्रेम विवाह योग कैसे देखे?

कुंडली में सप्तम स्थान होता है विवाह का सप्तमेश यदि पंचम स्थान के मालिक के साथ 3, 5, 7, 11 और 12वें भाव में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह अवश्य करता है. पंचम स्थान प्रेम संबंध तथा मित्रों का माना जाता है. ऐसे में सप्तमेष का संबंध पंचमेश से हो जाए तो व्यक्ति के प्रेम विवाह करने के योग बनते हैं.

लव मैरिज का योग कैसे बनता है?

जन्म कुंडली में पंचम भाव, सप्तम भाव तथा एकादश भाव के स्वामियों में परस्पर संबंध हो तो प्रेम विवाह योग होता है। पंचम भाव और सप्तम भाव के स्वामियों का परिवर्तन योग, पंचमेश और सप्तमेश की युति तथा पंचमेश और सप्तमेश में दृष्टि संबंध हो तो प्रेम विवाह योग होता है।

प्रेम विवाह के लिए कौन सा ग्रह जिम्मेदार है?

वहीं ज्योतिष के अनुसार बात करें तो शुक्र ग्रह प्रेम और वैवाहिक जीवन के लिए जिम्मेदार माना जाता है। आज हम इस लेख में बताएंगे कि कुंडली में किन ग्रहों की ऐसी विशेष स्थिति बनती है जिनकी वजह से व्यक्ति का प्रेम और वैवाहिक जीवन शानदार रहने वाला है।

प्रेम विवाह कैसे होता है?

प्रेम विवाह दो व्यक्तियों के आपसी प्रेम, परवाह, आकर्षण और वादे से हुए मेल को कहते है। हालांकि इसका पाश्चिमात्य संस्कृती में कम महत्व है जहाँ लगभग अधिकांश विवाह "प्यार के आधार" पर होते है, परन्तु इसका अर्थ अन्य स्थानों पर विवाह के उस प्रकार को माना जाता है जो ज़बरदस्ती किया गया विवाह या ठहराया गया विवाह से अलग हो।