रॉबर्ट क्लाइव एक कुशल सेनापति के साथ-साथ अच्छा प्रशासक और सफल कूटनीतिज्ञ भी था। उसने द्वैध शासन की स्थापना कर बंगाल, बिहार और उड़ीसा में अंग्रेजी शक्ति को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। इस शासन प्रबंध से कम्पनी की आय में 30 लाख पौण्ड की वृद्धि हो गई। किंतु, इस व्यवस्था के लागू होने के कुछ दिनों बाद ही इसमें अनेक प्रकार के दोष समाहित होने लगे। व्यवहारिक दृष्टि से द्वैध शासन का प्रबंध पूर्ण रूप से असफल रहा तथा इसके परिणाम बुरे निकले। एक ओर प्रशासन का पूरा दायित्व उठाने में नवाब असमर्थ था, क्योंकि एक तो वह आर्थिक दृष्टि से कमजोर था और दूसरे कम्पनी का उस पर नियंत्रण था, जबकि दूसरी आर अंग्रेजी कम्पनी के हाथों में शक्ति थी. तो उसके पास प्रशासन का कोई दायित्व नहीं था। कम्पनी ने अधिक-से-अधिक धन की उगाही को ही अपना लक्ष्य निर्धारित किया। Show नवाब की शक्ति सीमित होने के कारण कम्पनी के अधिकारी नवाली आज्ञाओं का उल्लंघन करने लगे। राजस्व वसूली के लिए कम्पनी टा जमींदारों ने कृषकों का अमानवीय शोषण आरंभ कर दिया। इससे जनसाधार स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी। व्यापार की स्थिति भी बदतर हो गई। कपनीर अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचारों का नकारात्मक प्रभाव बंगाल के उद्योग- पर भी पड़ा-यहां का कुटीर उद्योग धीरे-धीरे बंद हो गया और शिल्पियों ने या तो अन्य व्यवसाय अपना लिए या बेरोजगारी का जीवन जीने के लिए बाध्य हो गए। बक्सर के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल की राजनीति पर प्रभावी नियंत्रण हो गया. कंपनी ने इलाहाबाद की संधि के तहत बिहार, उड़ीसा तथा बंगाल पर द्वैध शासन या दोहरी शासन (1765-1772) लागू किया. इसके तहत यहाँ के प्रशासन का जिम्मा नबाब को दिया गया जबकि कर वसूलने का अधिकार कम्पनी ने अपने पास रखा. इस दोहरी प्रशासन व्यवस्था को द्वैध शासन प्रणाली कहा गया. हम इस पोस्ट में समझेंगें की द्वैध शासन क्या है, बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली क्यों लागू किया गया और इसका क्या प्रभाव पड़ा| यह भी पढ़ें: भारत में यूरोपीय वाणिज्यिक कम्पनियों का आगमन बंगाल की द्वैध शासन क्या हैद्वैध शासन का अभिप्राय दोहरी शासन व्यवस्था से है. बक्सर के युद्ध के बाद इलाहाबाद की संधि के तहत अंग्रेजों ने बंगाल सहित उड़ीसा तथा बिहार पर द्वैध शासन थोप दिया. इसके तहत कम्पनी ने कर वसूलने का अधिकार अर्थात दीवानी अधिकार अपने पास रखा. जबकि शासन का अधिकार अर्थात निजामत का अधिकार बंगाल के कठपुतली नबाब को सौंप दिया. इस व्यवस्था से सम्पूर्ण बंगाल अस्थिर हो गया. क्योंकि नबाब के पास शासन करने के लिए किसी भी तरह के वित्तीय स्त्रोत उपलब्ध नहीं थे जबकि अंग्रेज जो की कर वसूलते थे उन्होंने अपने ऊपर किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं ली. दुसरी ओर नबाब अपनी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए कम्पनी पर पूर्ण आश्रित हो गया था अतः निजामत पर भी कम्पनी का नियंत्रण था. यह व्यवस्था अंग्रेजों के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ. कंपनी का सत्ता पर पुरा अधिकार हो गया, जबकि उनके ऊपर किसी भी तरह की जिम्मेदारी नहीं थी. प्रशासन का दायित्व नबाब पर था लेकिन इसका निर्वाह करने की शक्ति उनके पास नहीं थी. अब शासन की विफलताओं के लिए नबाब पर दोषारोपण किया जा सकता था. जबकि प्राप्त लाभ का उपयोग कंपनी करती थी. इधर जनता दोनों ओर से पीस रही थी, उनके हितों की रक्षा न तो कंपनी करती थी और न ही नबाब. बंगाल में द्वैध शासन के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने जनता पर मनमाने अत्याचार किये, किसानों से अधिक से अधिक राजस्व वसूले. ददनी व्यवस्था के नाम पर शिल्पियों को डरा धमकाकर काफी शोषण किया गया. परिणामस्वरूप व्यापार, वाणिज्य तथा कृषि से समृद्ध बंगाल कंगाली के कगार पर पहुँच गया. ददनी व्यवस्था – यह एक मध्यकालीन व्यवस्था थी. इसके तहत व्यापारी-शिल्पियों को अग्रिम रकम देकर निर्धारित समय पर आपूर्ति की आशा की जाती थी. संबंधित सामान्य तथ्यात्मक प्रश्नप्रश्न 1. बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली कब तक लागू रहा? प्रश्न 2. बंगाल में द्वैध शासन का आशय क्या है? प्रश्न 3. बंगाल में द्वैध शासन किसने लागू किया? प्रश्न 3. बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली का अंत किसने किया? बंगाल में द्वैध शासन क्यों लागू किया गया?Q. 1. बंगाल में दोहरी शासन का कम्पनी के लिए क्या निहितार्थ था? उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर को निम्न बिन्दुओं में देखा जा सकता है.
उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी ने यहाँ द्वैध शासन प्रणाली को लागू किया. द्वैध शासन के दोष एवं बंगाल पर इसका प्रभावबंगाल में 1765 से 1772 तक के दोहरे शासन के काल को K M पणिक्कर ‘डाकुओं का राज’ कहते है. द्वैध शासन के दोष एवं बंगाल पर इसका प्रभाव को निम्न बिन्दुओं के रूप में देखा जा सकता है.
इस तरह बंगाल में द्वैध शासन से न तो कम्पनी और न ही बंगाल की जनता लाभान्वित रही. इससे केवल कुछ व्यक्ति के निजी हितों की पूर्ति हुई. आपने इस पोस्ट में समझा की बंगाल में द्वैध शासन क्या है, बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली क्यों लागू किया गया और इसका क्या प्रभाव पड़ा. आशा है की आप इससे लाभान्वित हुए होंगें. इससे संबंधित प्रतिक्रिया आप हमें कमेंट के माध्यम से दे सकते है.यह जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे शेयर जरुर करें द्वैध शासन से आप क्या समझते है?जब दो शासक एक साथ सत्ता का संचालन करते है तो इसे द्वैध शासन (Diarchy) कहते है। 'द्वैध शासन' का सिद्धांत सबसे पहले लियोनेल कर्टिस नामक अंग्रेज ने अपनी पुस्तक "डायर्की" में प्रतिपादित किया था जो बहुत दिनों तक 'राउंड टेबिल' का सम्पादक रहा।
द्वैध शासन की शुरुआत कब हुई थी?भारत सरकार अधिनियम 1919 ने ब्रिटिश भारत के प्रांतों पर शासन करने के लिए द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की थी।
भारत में द्वैध शासन कब से कब तक चला?उन्होंने 1765 में बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की। और इसे 1772 तक जारी रखा गया था। ध्यान रहे की रॉबर्ट क्लाइव को 'ब्रिटिश भारत का बाबर' कहा जाता है।
बंगाल का द्वैध प्रशासन से आप क्या समझते हैं?राबर्ट क्लाइव द्वारा मुगल सम्राट शाह आलम से दीवानी प्राप्त कर लेने के बाद बंगाल में जो शासन व्यवस्था कायम हुई उसे द्वैध शासन के नाम से जाना जाता है। द्वैध शासन में प्रशासनिक दायित्व तो बंगाल के नवाब के हाथों में था लेकिन राजस्व वसूली का दायित्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास था।
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